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बहने देना / महेन्द्र भटनागर

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बहने देना आँसू मेरे किन्तु, स्नेह-उपहार न देना !

पथ पर जब मैं रुक-रुक जाऊँ,
प्रति पग पर जब झुक-झुक जाऊँ,
तूफ़ानों से लड़ते-लड़ते
झंझा में फँस कर थक जाऊँ,
गिर-गिर चलने देना मुझको, क्षण भर भी आधार न देना !

ज्वार उठे सागर में चाहे,
नौका फँसे भँवर में चाहे,
देख घिरी घनघोर घटाएँ
धड़कन हो अंतर में चाहे,
बढ़ने देना मुझको आगे, हाथों में पतवार न देना !

अंधकार-मय जीवन-पथ पर,
कुश-कंटक मय जीवन-पथ पर,
संबल-हीन अकेला केवल,
अपना अन्तस्तल ज्योतित कर,
मैं उठता-गिरता जाऊंगा, सुलभ-ज्योति संसार न देना !
1945