Last modified on 24 जनवरी 2020, at 23:14

पतंगें / अनिल मिश्र

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:14, 24 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

शरद के नीले आसमान में
उड़ रही हैं रंग बिरंगी पतंगे
किसी पर ओबामा उड़ रहे हैं
किसी पर मदीबा

जब उड़ती है एक पतंग
आसमान बाहें फैलाकर उसे चूमता है
सूरज अपने रथ को तनिक नीचे ले आता है
उसकी पीठ थपथपाने
चिड़ियां चकित होकर देखती हैं
उसकी अठखेलियां
बाहों में बाहें डाल स्वप्न
उड़ते हैं इरादों के साथ
और हारे और उदास चेहरों पर छिड़कते हैं
हौसलों के पवित्र जल

रात भर की बेचैनी के बाद
बच्चों की आंखों की टिम टिम
छतों या मैदानों में
पतंगों की पीठ पर सवार होकर
निकल पड़ती है एक नई दुनिया खोजने
जिस के रास्ते उन्होंने देखे थे
सपनों में

पृथ्वी की बंदिशों के खिलाफ
शुरू हो जाता है
सविनय अवज्ञा आंदोलन

कोई समय है
घड़ी की मात्र टिक टिक
कोई समय है
घंटाघर की बीमार टन-टन
पतंगों के साथ उड़ता समय है
आकाश के साथ तटबंधों को तोड़कर
एक धारा में बह जाना

जब कट कर गिरती है एक पतंग
नदी रुक जाती है
और पहाड़ दरक जाते हैं थोड़ा
यह बात बच्चों के सिवा
कोई और नहीं जानता