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भरम / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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उजियारे की चाहत की तो,
स्याह अँधेरा पाया है,
भीड़ भरी इस दुनिया में,
सिर्फ हमारा साया है।

हर दामन में दाग यहाँ पर,
हर आंचल में यौवन मैला,
किसको गंगा जल से धोएँ,
हर तन कालिख जाया है। उजियारे की...

हर दिल यहाँ मुखौटा पहने,
प्रेम वफा और यारी का,
सोने के हर आभूषण में,
ताँबा मैंने पाया है। उजियारे की...

जो कहते थे बिना तुम्हारे,
हम तो नहीं रेह पायेंगे,
मेरी आंखे के आगे ही,
उनका मन भरमाया है। उजियारे की...

घर से मरघट तक मातम है,
हर चेहरा ओढ़े मायूसी,
किसका दिल सचमुच टूटा है,
और किसने नेम निभाया है। उजियारे की...

कौन चलेगा चार कदम संग,
और कंधा कौन लगायेगा,
किसकी करूँ आस दुनिया में,
सब पर मौत का साया है। उजियारे की चाहत की तो ...