ख़ूब सज रहे आगे-आगे पंडे
सरों पर लिए गैस के हंडे
बड़े-बड़े रथ, बड़ी गाड़ियाँ, बड़े-बड़े हैं झंडे
बाँहों में ताबीज़ें चमकीं, चमके काले गंडे
सौ-सौ ग्राम वज़न है, कछुओं ने डाले हैं अण्डे
बढ़े आ रहे, चढ़े आ रहे, चिकमगलूरी पंडे
बुढ़िया पर कैसी फबती है दस हज़ार की सिल्कन साड़ी
उफ़, इसकी बकवास सुनेंगे लाख-लाख बम्भोल अनाड़ी
तिल-तिल कर आगे खिसकेगी प्रजातंत्र की खच्चर-गाड़ी
पूरब, पश्चिम, दक्खिन, उत्तर आसमान में उड़े कबाड़ी
(रचनाकाल : 1978)