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वसन्त की अगवानी / नागार्जुन

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रंग-बिरंगी खिली-अधखिली

किसिम-किसिम की गंधों-स्वादों वाली ये मंजरियाँ

तरुण आम की डाल-डाल टहनी-टहनी पर

झूम रही हैं...

चूम रही हैं--

कुसुमाकर को! ऋतुओं के राजाधिराज को!!

इनकी इठलाहट अर्पित है छुई-मुई की लोच-लाज को!!

तरुण आम की ये मंजरियाँ...

उद्धित जग की ये किन्नरियाँ

अपने ही कोमल-कच्चे वृन्तों की मनहर सन्धि भंगिमा

अनुपल इनमें भरती जाती

ललित लास्य की लोल लहरियाँ!!

तरुण आम की ये मंजरियाँ!!

रंग-बिरंगी खिली-अधखिली...


(रचनाकाल : 1976)