मूर्ति द्वारा दुग्ध पान,
सुनकर हुआ था आश्चर्य,
क्या जड़ भी चेतन बन सकते है,
यह भावना विहीन चेतन भी जड़ कहलाते है,
अनेक मंदिरों में रोज चढ़ता है प्रसाद।
तब तो यह प्रश्न भी नहीं उठा वे गृहीत की गई या नहीं
क्योंकि प्रेम विश्वास होता है, संदेह नहीं।
भक्तों का विश्वास, मंदिर से मंदिर,
घर से घरों में आता देख कितना सुखद प्रतीत होता है,
जब सभी एक दिशा में बहते है,
दूध की कटोरी प्रभु के मुख पर लगाते हैं,
पी लिया दूध सभी का बस यही समझ पाते है।
आस्था कितनी बलवती होती है,
आश्चर्य को सत्य में बदल सकती है।