हे भाव शून्य तेरे द्वारा,
प्राणों की रक्षा क्या होगी।
तेरा मन मानस पत्थर है,
फिर अमृत वर्षा क्या होगी?
रे निर्दय बुद्धिहीन कायर,
तेरे जीवन की गति क्या होगी?
लहू से भीगे हाथ तेरे,
अब कभी न वे टेसू होंगे,
पछतावे के प्रतिमूर्ति बने,
एक दिन दुनिया से चल दोगे,
जाने से पहले यदि चाहो,
मानव बनकर के दिखलाओ,
सारी दुनिया में तुम ही हो,
बस रूप तुम्हारे पृथक-पृथक
हर जीव-जीव से जुड़ा हुआ,
फिर क्यो बनते हो विलग-विलग।
सबको अपना करके देखो,
पर पीडा को अपना जानों।
हर आँख के बहते पानी को,
अपना ही तुम आँसू जानों,
तुम भाव प्रवर, तुम ब्रह्म रूप,
अपने को मत छोटा समझो।