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याद / ऋतु पल्लवी

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शांत-प्रशांत समुद्र के अतल से

उद्वेलित एक उत्ताल लहर

वेगवती उमड़ती किसी नदी को

समेट कर शांत करता सागर।


किसी घोर निविड़तम से

वनपाखी का आह्वान

प्रथम प्यास में ही चातक को

जैसे स्वाति का संधान।


अंध अतीत की श्रंखला से

उज्ज्वल वर्तमान की कड़ी

भविष्य के शून्य से

पुनः अन्धतम में मुड़ती लड़ी





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