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सावन बनकर आऊँगा / राहुल शिवाय

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कभी तुम्हारे जीवन में सूखापन आये
मुझसे कहना मैं सावन बनकर आऊँगा।

अभी बहुत रस-गंध बहुत यौवन है तुममें,
अभी तुम्हें क्या कमी प्यार की होने वाली।
अभी माँग लो उडुप-करधनी ला सब देंगें,
अभी नहीं है विरह आँख दो धोने वाली।

मगर प्रीत के मधुकर जब ठुकरा जाएँगें-
तब तुम कहना मैं साजन बनकर आऊँगा।

अभी तुम्हारी चाह बदल सकती है पल-पल,
अभी तुम्हारी चालें उर घायल करती हैं।
अभी तुम्हारी इच्छाओं को पूरा करने,
जाने कितनी ही इच्छाएँ दम भरती हैं।

मगर शिला-सा छोड़ तुम्हें जब जग जाएगा-
तुमपर मिटने मैं चंदन बनकर आऊँगा।

अभी तुम्हें शृंगार, चमकते वस्त्र लुभाते,
अभी कहाँ है मोल किसी ढाई अक्षर का।
जहाँ शोर की चाह प्राण! हावी हो मन पर,
वहाँ कहाँ है मोल हृदय से उठते स्वर का।

मगर शोर से मौन प्रिये! जब भी आएगा-
प्यार भरा तब मैं गुंजन बनकर आऊँगा।