गुनगुन करता रहता भौंरा
कलियों-फूलों पर मँडराता
फूलों का रस पीने को यह
उपवन-उपवन दौड़ लगाता
कितना काला इसका तन है
फिर भी फूलों को यह भाता
फूलों से मकरंद चूसता
और सभी पर नेह लुटाता
करता है जो प्रेमिल गुंजन
वह ही सबका सगा बनाता
आपस में मिलकर रहने की
सीख हमें भौरा सिखलाता