कई बातें बिना प्रयोजन के ख़ुशी दे जाती है
आज एक नया फूल खिला
उजला फूल
इस फूल का ये रंग मैने पहली बार देखा
पहली बार उजला मुझे इतना भला लगा
कई बार देखी कोई आम-सी बात
किसी विशेष स्थान से जुड़ कर कितनी खास हो जाया करती है
मैने इसे छूकर देखा
जो अच्छा लगे, हम उसे छूना चाहते हैं
चाहते हैं न!
फिर चाहे हांथो से या केवल आंखों से
या ध्वनि से।
मुझे लगा फूल मुझे ताक रहा
के मानो ये मेरे लिए खिला हो
सब मालूम है इसको कि
इसका खिलना मेरे गुमसुम दिनों में हरारत भरेगा
जबकि क्या मैं नहीं जानती
खिलना कर्म है इसका
कुछ वहम हम जानबूझ के बनाते हैं
फूल देखना भी बहाना था
किसी ने मुस्कुरा कर पूछ लिया-
कैसी हो तुम?
और मेरी प्रसन्नता कविता बनकर निकली।