कृष्णपक्ष अंबर के वक्ष पर
चाँद समान बिम्ब उभरा है
अभेद अंधकार पारदर्शी हुआ
सायास ही!
न था छोर कोई जिसका
उसके इस पार मैं थी
उस पार भी था
प्रतिबिम्ब मेरा ही
उस अवर्णनीय क्षणों में
नेत्रों ने तोड़ा
मूंदे जाने का प्रतिबंध
जबकि थी मनाही छाया से उपजी प्रतिछाया की
था अपराध मेरा इतना ही
क्षमाप्रार्थी हूँ, इतनी ही।