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छन्द / रोहित आर्य

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जवान मेरे देश के
मनमानी दिल खोल कर करते हैं किन्तु,
रक्त भी बहाते हैं जवान मेरे देश के।
बात बड़े-बूढ़ों की ये मानते नहीं परन्तु,
आन को बचाते हैं जवान मेरे देश के।
भारती की शान को बचाने हेतु शत्रुओं के,
वक्ष चीर लाते हैं जवान मेरे देश के।
ग़र माता भारती पै कोई आँच आती है तो,
ताण्डव मचाते हैं जवान मेरे देश के॥

जवान
देशभक्ति वाली आग सीने में समेट कर,
पत्थरों को तोड़ चूर-चूर कर आते हैं।
देश को ज़रूरत जो पड़ती है ख़ून की तो,
वक्ष चीर कर ख़ून अपना बहाते हैं।
देश के जवान कभी मरने से डरते न,
सीधे जाके यमराज से भी टकराते हैं।
माता भारती के स्वाभिमान को बचाने हेतु,
शत्रुओं का भी कपाल फ़ाड़ कर लाते हैं॥

वन्दे मातरम...
बलिदानियों ने रक्त देकर के जो लिखा था,
उनके लहू का है निशान वन्दे मातरम।
लाखों ललनाओं का सिंदूर जिसमें भरा है,
सूनी हुई गोदियों का गान वन्दे मातरम।
आज़ादी की पावन बहार लेकर के आया,
मेरे देश का है गुणगान वन्दे मातरम।
सवा सौ करोड़ भारतीयों का गुमान है ये,
भारती की आन-बान-शान वन्दे मातरम॥

वन्दे मातरम्
आज़ादी के वीर रणबाँकुरों ने गाया जिसे,
वन्दे मातरम क्रांतिकारियों का मीत है।
झूम-झूम फाँसियों को चूमने का जोश देता,
बलिदानियों की भावनाओं वाला गीत है।
वन्दे मातरम एक गीत ही नहीं है किन्तु,
माता भारती का गौरवमयी अतीत है।
सारे देशवासियों को अभिमान देने वाला,
वन्दे मातरम माता भारती की जीत है॥

आन-बान-शान तिरंगा
इसको न सिर्फ़ कपड़ा ही मान लीजियेगा,
सवा सौ करोड़ का गुमान ये तिरंगा है।
आज़ादी की बलिवेदी पर बलिदान हुए,
शहीदों के लहू का निशान ये तिरंगा है।
इसकी सुरक्षा हेतु सरहद पै खड़े जो,
सैनिकों के शौर्य का निशान ये तिरंगा है।
मेरा ये तिरंगा मेरी शान ही नहीं है किन्तु,
माता भारती की आन-बान ये तिरंगा है॥

खुशियों की बहार...
करके स्वतन्त्र हमको चले गये तभी तो,
भारत में आज अपनी ही सरकार है।
देकर के हमको स्वतन्त्रता सुहानी गये,
किया बलिदानियों ने यही उपकार है।
आज़ादी के लिए लाश अपनी बिछाईं और,
दे दिया हमें ये आज़ादी का उपहार है।
लाखों बलिदानियों के बलिदान के स्वरूप,
भारत में आई खुशियों की ये बहार है॥

इंक़लाब लिखते गये...
गोरे-आताताइयों के सीने पर प्रहार कर,
रक्त को बहाकर जवाब लिखते गये।
बम विस्फोट कर, शत्रुओं पै चोट कर,
निज देशवासियों के ख्वाब लिखते गये।
भारती की आन-बान-शान को बचाते हुए,
आताताई गोरों पै दवाब लिखते गये।
देश की स्वतन्त्रता को मेरे देश के जवान,
फाँसियों को चूम इंक़लाब लिखते गये॥

काकोरी कांड
भारत का हर एक देशभक्त नौजवान,
बन गया अंगरेजों के लहू का प्यासा था।
जीवन को दीप के समान ही जला कर के,
दूर कर दिया देश का सभी कुहासा था।
काकोरी में रेल रोक के खजाना लूट कर,
गोरों का बनाया सारे जग में तमाशा था।
देश को गुलाम जिन गोरों ने रखा हुआ था,
मार दिया उनको ही ज़ोर से तमाचा था॥

तिलक
भारती की मुक्ति हेतु घर-बार त्याग दिया,
देशभक्ति का अजीब कैसा ये असर था।
क्रूर अंग्रेजों को उखाड़ने पछाढ़ने को,
नौजवानों ने चलाया देश में गदर था।
हंस-हंस कर फाँसियों को चूमते रहे थे,
लड़ते रहे थे मौत का न कोई डर था।
गीता का रहस्य लिखकर काल कोठरी में,
अमर हुआ था नाम बाल गंगाधर का॥

खुदीराम बोस
गोरे आतताइयों के अत्याचारों के विरुद्ध,
बूढ़े, बच्चे, नौजवानों के दिलों में रोष था।
भारत ये अपना स्वतन्त्र होके ही रहेगा,
हर कोई सीना ताने करता ये घोष था।
भारत माता की परतन्त्रता की बेड़ियों को,
काटने को सब में वह भर गया जोश था।
अठारह बरस वाली छोटी-सी उमर में ही,
फाँसी पर चढ़ गया खुदीराम बोस था॥

मंगल पाण्डे
चरबी से युक्त कारतूस का विरोध किया,
दूर कर दिया उसने सभी अन्धेर था।
माता भारती के पुत्र का लहू उबल गया,
गोली दागने में किया तनिक न देर था।
क्रान्ति के पथ का वह बन गया अग्रदूत,
गोली से फिरंगियों को कर दिया ढेर था।
जिसकी दहाड़ सुन लन्दन भी काँप गया,
मंगल हमारा वह तो एक बब्बर शेर था॥

वीर सावरकर
शेर बब्बरों ने थी स्वतन्त्रता दिलाई हमें,
तन को कँपाने वाली यातनाएँ झेल के।
मात्र चार-छः कटोरी पानी मिला करता था,
बाद में निकालने के तीस पौण्ड तेल के।
अण्डमान की दीवार पर कवितायें लिख,
काटा कारावास मौत संग खेल-खेल के।
हमको स्वतन्त्रता का उपहार दिया है जी,
वीर सावरकर ने कोल्हू पेल-पेल के॥

अँगरेज सरकार काँपने लगी थी सुनो,
बलिदानियों के द्वारा उठाये कदम से।
भारती के वीरों की हुँकार सुन अँगरेज,
ऐसे काँपते थे जैसे परमाणु बम से।
ऐसे ही विनायक जी जाकर के अण्डमान,
सीधे जाकर के भिड़ गए सुनो यम से।
इतनी सुहावनी स्वतन्त्रता मिली है हमें,
सावरकर के जैसे वीरों के ही दम से॥

प्रणाम
भारती की मुक्ति हेतु जिन रणबांकुरों ने,
तन-मन वारा और वारा धरा धाम है।
रक्त को बहाते हुए शीश को कटाते हुए,
लड़े अन्त तक कभी लिया न विराम है।
राष्ट्र की स्वतन्त्रता को मृत्यु का वरण कर,
जिन्होंने लिखाया बलिदानियों में नाम है।
बिस्मिल अशफाक रोशन व लाहिड़ी जी,
मस्तक झुका के इन सबको प्रणाम है॥

अब्दुल हमीद
नीच पाकिस्तान ने किया था हमला यहाँ पै,
हमने भी थप्पड़ों से मुँह मोड़ दिये थे।
नीच पाकिस्तानियों को फाड़ डालने के लिए,
दसमेश गुरु वाले बाज छोड़ दिये थे।
अब्दुल हमीद ने लहू से इतिहास लिख,
पाकिस्तानियों के जबड़े मरोड़ दिये थे।
माता भारती के उस शेर से सपूत ने तो,
बम बरसाते हुए टैंक तोड़ दिए थे॥

शान्ति का त्याग...
भारती के वीरो अब शान्ति व्रत तोड़कर,
वन्दे मातरम् लिखो शत्रुओं की साँस पै।
शान्ति व अहिंसा वाले रास्ते को छोड़कर,
अड़ जाओ भारती के शत्रुओं के नाश पै।
भारती के शत्रुओं के वक्ष फाड़कर आप,
लाल रक्त को बहाओ हरी-हरी घास पै।
माता भारती की आन-बान को बचाने हेतु,
गाढ़ दो तिरंगा सारे शत्रुओं की लाश पै॥

तिरंगा तन पै
माता भारती के स्वाभिमान को बचाने हेतु,
खाऊँगा मैं गोलियों को अपने बदन पै।
तोप के दहानों से भी जा के टकराऊँगा मैं,
आँच नहीं आने दुँगा अपने वतन पै।
भारती के शत्रुओं की मुण्डियाँ मरोड़ दुँगा,
करके प्रहार शत्रुओं की गरदन पै।
अपना तिरंगा सीमा पार फहराऊँगा माँ,
और लिपटेगा ये तिरंगा मेरे तन पै॥

तिरंगा फहराया है
हम यहाँ मौज से जो ज़िन्दगी गुजारते हैं,
उस पै हमारे वीर सैनिकों की छाया है।
जहाँ पै परिन्दा कोई पर भी न मार सके,
वहाँ पै भी देश का जवान खड़ा पाया है।
किसी का शरीर टुकड़ों में बँट गया है तो,
कोई बिना शीश के ही लौट कर आया है।
गोलियाँ सीने पै ख़ाके क्रूर मौत को डरा के,
देश के जवानों ने तिरंगा फहराया है॥