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पुरुष दरिन्दा / रोहित आर्य

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यह पुरुष दरिन्दा हुआ आज, क्यों हवस में अंधा हुआ आज,
अपने इन किए कुकर्मों से, कीचड़ से गंदा हुआ आज।
माँ और बहनों की इज्जत को, कब तलक रौंदते जाओगे,
नामर्दी वाले कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥1॥
यह पुरुष दरिन्दा...
चिड़िया फंसकर ज्यों गिद्धों में, लोहूलुहान हो जाती है,
उस तरह ही एक बेचारी, अधमरी जान हो जाती है।
करने को इज्जत तार-तार, जिस तरह टूट कर पड़ते हो,
क्या कभी बचाने को उसको, ऐसी ताकत से लड़ते हो?
अपनी माँ, बहन, बेटियों के, संग में क्या यह सह पाओगे?
नामर्दी वाले कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥2॥
यह पुरुष दरिन्दा...
छोटी बच्ची, बूढ़ी महिला, नवयुवती को न छोड़ रहे,
बन गए जानवर से बदतर, पशुता की सीमा तोड़ रहे।
इतना अच्छा लगता है तो, अपनी माँ से दुष्कर्म करो,
निज बहना के कपड़े फाड़े, पहले यह अच्छा कर्म करो।
दुष्कर्म पीड़िता होने का, तब ही तुम अनुभव पाओगे,
नामर्दी वाले कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥3॥
यह पुरुष दरिन्दा...
करते हो रेप नारियों का और हत्या भी कर देते हो,
ग़र वह जिन्दा रह जायें तो, जीवन दुःख से भर देते हो।
इतनी पशुता कैसे आती, करते दरिन्दगी उनके सँग,
इज्जत के सँग लूट लेते, उनके सुन्दर जीवन के रँग।
बदरंग बनाया जो जीवन, क्या रंगों से भर पाओगे,
नामर्दी वाले कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥4॥
यह पुरुष दरिन्दा...
दुष्कर्मी, नालायक, नीचो, हिम्मत इतनी दिखलाओ तो,
अपनी माता और बहनों को, अपनी करतूत बताओ तो।
बीबी और बच्चों को बोलो, मैंने यह काम किया है जी,
बनकर दुष्कर्मी नालायक, ऊँचा निज नाम किया है जी।
अपनी माँ, बहना, बेटी से, क्या नज़र मिला तुम पाओगे,
नामर्दी वाले कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥5॥
यह पुरुष दरिन्दा...
यह पाप तुम्हारा है लेकिन, उसको ही ढोना पड़ता है,
जिसकी गलती न है उसको, जीवन भर रोना पड़ता है।
भगवान करे ना यह किस्सा, तेरी बेटी के संग होवे,
जिस कारण से वह बेचारी, जीवन जीने से तंग होवे।
अपनी बेटी की खातिर क्या, बोलो तुम चुप रह जाओगे,
नामर्दी वाले कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥6॥
यह पुरुष दरिन्दा...
इज्जत लुट जाए हिंदू की, आबरू लुटे या मुस्लिम की,
होवे शिकार कोई बेटी, हालत समझो उसके मन की।
इज्जत तो इज्जत होती है, हिंदू-मुस्लिम में बाँटो ना,
पहले से ही जो लाश बनी, उसको दोबारा काटो ना।
ऐ राजनीति करने वालो, बोलो कितने गिर जाओगे,
नामर्दी वालो के कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥7॥
यह पुरुष दरिन्दा...
ऐ मर्द कहाने वालो तुम, घटिया यह सोच बदल डालो,
इनको अपमानित करने के, ना गंदे मंसूबे पालो।
इनको खुलकर के उड़ने दो, अम्बर से ऊपर जाएंगी,
भारत की शान तिरंगे को, सारे जग में लहराएंगी।
इनके खुलकर के जीने पर, कब तक प्रतिबन्ध लगाओगे,
नामर्दी वाले कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥8॥
यह पुरुष दरिन्दा...
सरकार कड़ा कानून करो, इन सबके अंग-भंग कर दो,
या चौराहों पर ले जाकर, इनके तन में गोली भर दो।
तब तक न पीड़ित महिला को, भी न्याय नहीं मिल पाएगा,
जब तक न सरेआम इनको, फाँसी लटकाया जाएगा।
जब यह मुस्काएंगी तब ही, तुम अच्छा भारत पाओगे,
नामर्दी वाले कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥9॥
यह पुरुष दरिन्दा...
कर देना इज्जत तार-तार, ना मर्दानगी कहाती है,
धिक्कार है तुम पर गर तुमसे, न महिला इज्जत पाती है।
यदि मर्द कहाना है तुमको, हर महिला का सम्मान करो,
न गन्दी नज़रों से घूरो, हरगिज न तुम अपमान करो।
"रोहित" नारी को इज्जत दे, सच्चे हमदर्द कहाओगे,
नामर्दी वाले कामों से, कैसे तुम मर्द कहाओगे॥10॥
यह पुरुष दरिन्दा...