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आडम्बर / मनीष मूंदड़ा

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जीवन जिसे लोग कहते हैं
जिया किसने है?
एक दूसरे को ढोते हैं
जिस ताने बाने की बात तुम करते हो
वो झुलसा पड़ा है
बरसों बरस की आग से
ना कोई डोर बची ना कोई सिरा दिखता हैं
बस
बाहरी कृत्रिम रोशनियों से चमकते
अंदरूनी अंधेरों को छुपने छिपाते
चले जा रहें हैं
कहीं दूर बड़ी तेजी से
सब आडम्बर के तानेबाने में साँसे लेते