Last modified on 21 मार्च 2020, at 14:48

तुम्हारे सिवा / मनीष मूंदड़ा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:48, 21 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह सफ़र कुछ अलग-सा हैं
मेरे जैसे संवेदनशील दिलों के लिए नहीं
मुझे रोज काँधे पर हाथ चाहिए
मुझे हर शाम वह मुस्कान चाहिए
हर रात साथ होने की तसल्ली चाहिए
बस तसल्ली
मेरी जि़ंदगी का सफ़र इस कदर एकाकी में गुजरा हैं
कि मन यह सोच के सिहर उठता है
क्या फिर मैं अकेला हो जाऊँगा
क्या मेरी उम्र फिर तन्हा अकेली गलियों में सिमट के रह जाएगी

शायद मुझे प्यार का मतलब नहीं पता
हो सकता हैं
इजहार का तरीक़ा नहीं पता
हो सकता है
मैंने सच्चा प्यार कभी किया ही नहीं
या फिर यह भी हो सकता है
मेरी जि़ंदगी में सच्चा प्यार हो ही नहीं
किससे पूछूँ
तुम्हारे सिवां...