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धनक / मनीष मूंदड़ा

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मन के धनक में कितने रंग होते हैं
एक रंग उजला पीला सा
जिससे फैलता है प्रकाश
दैदिप्यवान करता हमारे मन को
एक सुर्ख लाल
जो डूबा है प्रेम में
अपनी लालिमा बिखेरता हुआ
गहरा नीला
आसमान की शक्ल सा
मन की गहराई को दर्शाता

सफेद, बेदाग
मन की सादगी को
प्रतिबिम्बित करता

और न जाने कितने रंग
कितने ही अर्ध-रंगों की बौछारें
जिन सब को मिलाकर बनता है
हमारे मन का स्वरूप
हमारी अपनी इच्छाओं का इंद्रधनुष
और एक रंग बिखरा है
अभी मेरे मन की सतह पर
ऐसा लगता है मानो कुछ टूट रहा है फिर
मन कुछ ढूँढ रहा है फिर
एक परछाई है निराशा की
काले बादल छाए हैं
या फिर गीले मन का जलता धुआँ
जो भी है
लगता उदासी का रंग हावी हो रहा है
मेरे मन के इंद्रधनुष के बाक़ी रंगों पर।