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आलौकिक प्रेम / मनीष मूंदड़ा

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कितनी आस्था के साथ
मेरा हाथ थामे तुम
ले गए थे युमना तट पे
आँखें मूँद
शीश नवाया
दीप जला कर
आरती की
कई सौ दीपों की दीपमालाएँ जल उठी थी
हमारे प्रेम की लौ लिए
एक एक दिया जो हमने छोड़ा था नदी में
फिर मेरा हाथ थामे
डगमगाते कदमों से
तुम नाव में बैठ गए
मुझसे कहा तुमने
आँख मूँद कर मेरा हाथ थामो
शीश नवाओ
और माँगो
यमुना माँ से आज
एक दूसरे का साथ
इस जनम और जन्मजन्मांतर
जैसे कृष्ण ने थामा था
राधा का हाथ
वैसे ही थामना तुम भी मुझे
वैसे ही अपनाना तुम मुझे
मैं श्रद्धा और प्रेम में नतमस्तक
झुक गया आँखे बंद कर
कहा है देवी माँ
एक नया जीवन दे
एक नया शुभारम्भ दे
इस जन्म और जन्म जन्मांतर
का अब साथ दे
हम एक हों
ये आशीर्वाद दे
आँखे खोला तो
तुम्हें देखा
आँखे अश्रुपुरित
मुझे देखती
शायद शुभारंभ था
हमारा, तुम्हारा
जन्म जन्मांतर के सफ़र का आरंभ था।