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चिड़ियाँ / अंशु हर्ष

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एक चिड़िया की काँटों भरी डगर
यूँ तो पँख है उस राह को पार करने को
लेकिन मन का एक तार जुड़ा है इस
डाल की राह से
मोह के धागे बंधे है
इस डाल के हर कोने से ...
सारा कुसूर उस सागर का है
जिसकी उफ़ान खाती हुई लहरों पे चल
एक दूसरी डाल आ कर रुकी थी
इसी नन्ही चिड़िया के लिए ...