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ज्योति-केन्द्र / महेन्द्र भटनागर

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    ज्योति के ये केन्द्र हैं क्या ?
    ये नवल रवि-रश्मि जैसे, चाँदनी-से शुद्ध उज्ज्वल,
    मोतियों से जगमगाते, हैं विमल मधु मुक्त चंचल !
    श्वेत मुक्ता-सी चमक, पर, कर न पाये नभ प्रकाशित,
    ज्योति है निज, कर न पाये पूर्ण वसुधा किन्तु ज्योतित !
    कौन कहता, दीप ये जो ज्योति से कुटिया सजाते ?
    ये निरे अंगार हैं बस जो निकट ही जगमगाते !
    ये न दे आलोक पाये बस चमक केवल दिखाते,
    झिलमिलाते मौन अगणित कब गगन-भू को मिलाते ?
 ज्योति के तब केन्द्र हैं क्या ?