औरत का कामकाजी होना भी
अखरता है
पुरूषवादी सोच को।
युवा होते बालक से लेकर अधेड़ तक
सभी देखते हैं, घूरते हैं
मात्र शारीरिक रचना कि तरह।
और प्रयास करते हैं
अपने मनोरंजन के लिए
उसकी देह के नापतोल का।
उसके वस्त्रों से
आंकते है चरित्र
और झांकते हैं
गिद्ध की दृष्टि लिए
उसकी आत्मा के भीतर तक॥