दर्द उसने बहुत सहा होगा।
तब कहीं जा के कुछ कहा होगा॥
कितनी नदियाँ निकल गयी होंगी
जल हिमालय का तब बहा होगा॥
कुछ तो मकसद ज़रूर था उसने
हाथ यों ही नहीं गहा होगा॥
कई पीपल उगे दिवारों पर
तब कहीं जा के घर ढहा होगा॥
कत्ल चुपचाप देखने वाला
वो अकेला नहीं रहा होगा॥