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न संतुष्ट होता मिली जो खुशी में / रंजना वर्मा

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न संतुष्ट होता मिली जो खुशी में।
बचा ही नहीं सब्र है आदमी में॥

गरीबी में जीना हुआ कब है आसाँ
मगर खूब धीरज भरा मुफ़लिसी में॥

सभी दर्दो ग़म भूल जायेंगे पल में
अगर आ गये आप इस ज़िन्दगी में॥

इशारों इशारों में ही ये बतायें
छुपाया है क्या आपने सादगी में॥

सजा लेंगे मीठी हँसी हम लबों पे
छुपा अश्क़ लें आपकी आशिक़ी में॥