Last modified on 5 अप्रैल 2020, at 20:52

मूँगफली / लक्ष्मी खन्ना सुमन

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:52, 5 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मी खन्ना सुमन |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जाड़ों की येह मेवा ठहरी
बिकती गली-गली
बादामों की 'मौसी' ठहरी
खस्ता मूँगफली

होले-होले कड़-कड़ बोले
जब वह मुखड़ा खोले
खाई जिसने इक, वह खाता
सारी होले-होले

कम दामों पर मिलती है यह
लो जेबों में डालो
एक-एक कर खाते जाओ
छिलके मगर सँभालो

हरे नमक वाले चटनी की
साथ मिले जब पुड़िया
अंगुल इक से चाटोगे तो
स्वाद लगेगा बढ़िया

गर्मा-गर्म कहाड़ी की ही
मैं लेकर घर आता
दीदी-मम्मी सबको देता
बाँट-बाँट कर खाता