साँझ हुई मुस्काते आए
विद्यालय से तारे
आँख-मिचौली मिल-जुल खेले
नभ के आँगन सारे
खेल-खेल कर, थककर सबको
खूब पसीना आया
गिरा जमीं पर, ओस बना वह
घास-पात पर छाया
आधी रात हुई तो काँपें
सभी ठंड के मारे
इक-दूजे को झपका आँखें
करते रहे इशारे
हुआ सवेरा डरकर कहते
सूरज दादा आए
छुप जाओ सब बच्चो, उनकी
डांट कौन अब खाए