Last modified on 10 अप्रैल 2020, at 01:40

मुझको अरसा हुआ मुस्कुराए हुए / जगदीश नलिन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:40, 10 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जगदीश नलिन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGh...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुझको अरसा हुआ मुस्कुराए हुए
जी रहा बेवजह सर झुकाए हुए

अश्क़ पीते हुए कट गई ज़िन्दगी
राह-ए-कज़ा में हूँ दिल जलाए हुए

सहरा-सहरा गुलिस्ताँ बनाता गया
आन्धियों की नज़र से बचाए हुए

क़दम-दर-क़दम बढ़ता ही मैं रहा
ग़म नहीं गढ़ूँ मैं जंग खाए हुए

देता काश माँझी जीने की एक मुहलत मुझे
ग़म भुलाए हुए मुस्कुराए हुए