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स्वार्थ / ओम व्यास

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स्वार्थ
अब भी मौजूद है, दुनिया में
तेजाब की तरह
अब भी
बूढ़े माँ बाप अच्छे लगते हैं,
बेटे बहू को जब होते है
उनकी गोद में बच्चे
अब भी
कमाते पुत्र के दुर्गुण
नहीं दिखते है
माँ बाप कों।
अब भी
सुहागन होने की गरज में
शराबी पति से पिटती है
उसकी 'औरत' ।
अब भी कमाऊ कुआंरी
लड़की शादी का प्रयास
नहीं करते घरवाले।
अब भी
नींद में खलल डालने वाली,
बाप की खांसी,
चौकीदार हो जाती है,
सूने पड़े मकान में।
क्योंकि,
समाज में
स्वार्थ का तेजाब
अभी बाकी है