Last modified on 11 अप्रैल 2020, at 15:33

विदाई / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:33, 11 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोजिनी कुलश्रेष्ठ |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जाओ बादल अब अपने घर
तुमने अमृत जल बरसाया
तपती धरती को सहलाया
नन्हें पौधों को नहलाया
बूंदें बरसी झर-झर–झर॥ जाओ बादल...

कभी तुम्हें सूझी शैतानी
सबको दुख देने की ठानी।
बरसाया जोरों से पानी
सभी हो गए तरबतर॥ जाओ बादल...

गड़-गड़ कर गरजे तुम भारी
फैली सभी ओर अंधयारी
बिजली भी चमकाई भारी
काँप उठे सब थर-थर-थर॥ जाओ बादल...

अब तो छिटक गए हो प्यारे
मटके सूखे सभी तुम्हारे
हरे भरे हैं खेत हमारे
नहीं अब हमें कोई डर॥ जाओ बादल...