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पुस्तक / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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पुस्तक मुझको सबसे प्यारी,
सभी वस्तुओं से यह न्यारी।

इसमें तो मैं नई-पुरानी,
पढ़ लेता हूँ सभी कहानी।

कविताएँ प्यारी होती हैं,
रस की पिचकारी होती हैं।

जल की थल की बात बताती,
सारे जग की सैर कराती।

ज्ञान और विज्ञान इसी में,
जप-तप पूजा ध्यान इसी में।

बड़ा बनूँ मेरा मन करता,
पढ़ूँ-पढँ मेरा मन करता।

विद्या देवी कहा निराली,
इनका कोष न होता खाली।