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दर्पण / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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दर्पण झूठ नहीं कहता है।
जो जैसा होता वैसा ही
यह उससे सच-सच कहता है।
दर्पण झूठ नहीं...
कोई दाग कहीं हो तन में
सभी दीख जाता दर्पण में,
कोई दाग अगर हो तन में
दर्पण उसकोण भी कहता है।
दर्पण झूठ नहीं...
तन है गोरा, मन है काला,
मन है उजला, तन है काला,
कोई भेद नहीं रखता यह
सब कुछ साफ-साफ कहता है।
दर्पण झूठ नहीं...
जब चाहो अपने को पाना
तुम दर्पण के आगे आना,
इसकी सुनना अपनी कहना
देखो यह क्या-क्या कहता है।
दर्पण झूठ नहीं...