Last modified on 8 सितम्बर 2008, at 12:06

सम्बोधन चिन्ह / ज्ञानेन्द्रपति

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:06, 8 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञानेन्द्रपति }} दिन की फुर्सत के फैलाव-बीच उगे एक पे...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दिन की फुर्सत के फैलाव-बीच उगे

एक पेड़ के तने से

पीठ टिका कर

जब तुम एक प्रेम-पत्र लिखना शुरू करते हो

कुछ सोचते और मुस्कुराते हुए

तुम्हें अचानक लगता है

कोई तुम्हें पुकार रहा है

कौन है - किधर, इस सूनी दोपहर में

तुम मुड़कर वृथा देखते हो

कि कोई हौले से तुम्हारा कन्धा थपथपाता है

और तुम देखते हो तनिक चौंके-से

पेड़ है, एक पत्ते की अंगुली से छूता तुम्हें--

एक शरारती दोस्ताना टहोका

और तुम उस पेड़ को शामिल होने देते हो अपने सम्बोधन में

सम्बोधन चिन्ह की जगह