लिखने की भी प्रतिध्वनि होती है,
बिना आवाज़ के उठती है,
गुफ़ा की अंधेरी दीवारों से टकरा कर
गूँजती है बार बार,
रोशनी बन जाती है
और फूट पड़ती है
इंक़लाब लाने को।
लिखने की भी प्रतिध्वनि होती है,
बिना आवाज़ के उठती है,
गुफ़ा की अंधेरी दीवारों से टकरा कर
गूँजती है बार बार,
रोशनी बन जाती है
और फूट पड़ती है
इंक़लाब लाने को।