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अंग—संग / कुमार विकल

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मेरे अंग—संग रहो

मेरे प्रियजनो!

मेरी हिफ़ाजत करो

मुझे इस समय तुम्हारी इतनी ज़रूरत है

जितनी युद्ध में सिपाही को हथियार की होती है|

दुश्मन नई साज़िशें चल रहा है

हमारे साथियों को

छोटे—छोटे लालचों से अपने पक्ष में कर रहा है|


मेरे प्यारे कामरेड रामाचल!

आ,तू अपनी पूरी जमात के साथ आ

मेरी डआल बन

मेरे अंग—संग चल

इन कमज़ोर क्षणों में

तू मुझे दे इतना बल

कि भूल जाऊँ मैं

उन दोस्तों का छ्ल

जो कर गये हैं हमसे घात

और छोड़ा है उस समय हमारा साथ

जब शब्द ठीक काम करने लगे थे

और शब्दों की ताक़त से

हम ठीक हथियार गढ़ने लगे थे|


कामरेड रामाचल,

शब्द और हथियार का इस्तेमाल

हज़ारों कंठों

लाखों हाथों की माँग करता है

इसलिए साथियों के छूट जाने का भाव

एक ज़ख़्म तो करता है|

आओ

हम अपने—अपने ज़ख़्म

एक दूसरे को दिखायें /सहलायें

लेकिन इन्हें अपनी जमात से से बिल्कुल न छपायें


मरहम तो आखिर जमात ही लगायेगी

एक माँ की तरह आँसुओं को पोंछेगी

दुलरायेगी

ओर फिर पीठ ठोंक कर

हमारी शक्ति को बढ़ायेगी|