एक ठहरी झील के
जल की तरह थे हम
सुनो
छू लिया तुमने
नदी की एक कलकल हुए हम l
जल तरंगों की तरह
बजने लगीं लहरें सभी,
ज्वार के रागों भरे
सब हो गये सीमान्त भी;
देख भर तुमने लिया हमको,
हमें ऐसा लगा
मधु मिलन के पर्व की
स्वच्छन्द हलचल हम हुए l
मछलियों-सी
तैरने फिर से लगीं
आसक्तियाँ,
एक आदिम गंध को
मिलने लगीं
अभिव्यक्तियाँ;
रोप दीं तुमने
हजारों रेशमी बेलें यथा
खुरदुरे अहसास थे
पर आज मखमल हुए हम l