लौट आया दिन
तुम्हारे पास होकर l
जब उनींदी खिडकियों के पट खुले
तो
यों लगा
जैसे तुम्हारे रूप की बैसाखियाँ ले
आ गईं किरनें सुनहरी,
छा गई सतरंगिनी छवियाँ
छरहरी;
भोर जागी
फिर तुम्हारी खुशबुएँ ले
लॉन के पौधे
खिले
तुमको संजोकर l
खिल उठी
मध्यान्ह के सूरज मुखी-सी
वह तुम्हारी छवि
हंसी-ठिठ्ठों भरी-सी
छेड़ती मुझको
कभी झकझोरती-सी
एक टूटापन
दुबारा जोड़ती-सी;
इस उमस में
तुम बनी पूरवा हवा-सी
जो बहुत निश्चिंत है
मुझको भिगोकर
सांझ उतरी
फिर
मुंडेरों पर छतों की
यों लगा
ज्यों बाल बिखराये तुम्हारी
मोर पंखी एक छाया
उतर आई,
मन हुआ
खैयाम की मीठी रुबाई;
याद फिर लाई तुम्हारी
पास मेरे
आसमानों के
कई तारे पिरोकर l