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अहल्या उद्धार / राघव शुक्ल

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नीव हिली है आज नेह की,ढहा समर्पण प्रेम किला है
आज अहल्या बनी शिला है

मुनि ने बांग सुनी मुर्गे की
कुटिया बाहर कदम बढ़ाया
गौतम रूप लिए कुटिया में
मोहित काम पुरंदर आया
गौतम पहुंच गए गंगा तट, सहसा भूतल तभी हिला है

कुटिया में लौटे देखा तब
निज नारी पर पुरुष साथ में
क्रोधित होकर उठा कमंडल
गौतम ने जल लिया हाथ में
दिया श्राप पत्थर बन जाए, यह जो तेरा रूप खिला है

विश्वामित्र साथ प्रभु पहुंचे
गुरु ने पूरी कथा सुनाई
सुनकर व्यथा कथा नारी की
रघुवर की आंखें भर आई
हुई शाप से मुक्त अहल्या जो प्रभु का स्पर्श मिला है