Last modified on 24 अप्रैल 2020, at 15:50

वनयात्रा / राघव शुक्ल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 24 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राघव शुक्ल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGee...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जंगल जंगल भटक रहे हैं ,राह कठिन है अति दुखदाई
लखन सिया संग हैं रघुराई

पहले अत्रि आश्रम पहुंचे
मुनि चरणों में शीश नवाया
राम लखन को देख वहां पर
साधुजनों ने था सुख पाया
सीता को भी भेंटे आभूषण प्रमुदित हैं अनुसुइया माई

फिर शरभंग कुटी में पहुंचे
देखा उन्हें तपस्या में रत
फिर सुतीक्ष्ण से मिले उन्होंने
किया हृदय से उनका स्वागत
श्री सुतीक्ष्ण मुनि ने रघुवर को दंडक वन की राह दिखाई

फिर पहुंचे अगस्त्य आश्रम में
मुनि बोले बातों बातों में
इक तलवार धनुष इक तरकश
दे करके प्रभु के हाथों में
इन शास्त्रों के योग्य तुम्हीं हो दरश तुम्हारा है सुखदाई