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शहर / अनिल जनविजय

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खद्दर में छुपी तोन्दों की पहचान यह शहर
लुटकर भी अपनी लूट से अनजान यह शहर

शोषण के जुए में जुती जनता यहाँ की बैल
कैसे हल को हाँकता किसान यह शहर

उनको रहती है सदा शिकार की तलाश
गोया कोई शिकारी मचान यह शहर

जनता और जुलूस पर होते हैं गोलीकाण्ड
डण्डों, गोली, बन्दूक की दुकान यह शहर

गले में अटका हुआ जीवन है यहाँ का
लगता है कोई सड़ा हुआ पकवान यह शहर

उगने के साथ ही सूर्य सुबह लाता है
ऐसे ही किसी सूर्य का उठान यह शहर

मिटेंगी सारी दूरियाँ, मिटेंगे वर्ग भेद
एक दिन ज़रूर बनेगा आसमान यह शहर