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अपने डरे / कृष्णा वर्मा

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1
पलटा पासा
दिल के शहर में
बसा सन्नाटा।
2
मजमे- मेले
तन्हाइयों के आज
लगे हैं ठेले।
3
अपने डरे
निठुर अवसाद
कौन आ हरे।
4
बिना जंजीर
वक़्त ने बाँधे पाँव
खींच लकीर।
5
वक़्त की शान
डरा सहमा आज
हर इंसान।
6
साँसों को साध
बाँच रही ज़िंदगी
कैसा ये पाठ।
7
ख़ुद ही छली
नंगे पाँव काँच पे
ज़िंदगी चली।
8
बंद संसार
जुड़े यूँ परिवार
ज्यों कारागार।
9
औंधा संसार
बदल गई धार
टूटा आधार।
10
गर्व हौसला
पल में प्रकृति ने
किया खोखला।
11
ढूँढें किनारे
मन की झील तैरे
शंका शिकारे।
12
अदृश्य चाँटा
जड़ा है गाल पर
छाया सन्नाटा।
-0-