मां ने कहा-
ठहरो सिद्धार्थ, कहां जाते हो इस तरह सबको त्यागकर?
देखो, सिसक रही है यशोधरा
किवाड़ की आड़ में
मचल रहा है नन्हा राहुल उसकी गोद में.
घर ने कहा-
मां ठीक ही कहती है बेटा
यहां हमेशा से नहीं था घर
पहले थे बहुत झाड़-झंखाड़
ऊबड़खाबड़ नदी-पहाड़
किया गया समतल इसे चट्टानें तोड़ताड़
बांधे गये घास-फूस के झोपड़े-मकान
जरा और मृत्यु तो तब भी बेटा
अब भी है
लेकिन घर त्याग कर इस तरह
नहीं चल दिये पुरखे
उनके समय भी नहीं थी कोई फैक्ट्री
नहीं थी कोई गन्ना मिल इलाके में
फिर भी यहीं गड़ा रहा उनका खूंटा
यहीं रमाये रहे धूनी.
नीम का पेड़ बोला-
घर बिलकुल ठीक कहता है बेटा.
वैसे जहां भी जाओगे
कोई बोधिवृक्ष नहीं पाओगे
वहां भी ढोओगे पीड़ाआें के पहाड़
करोगे चाकरी
तोड़ोगे हाड़
दु:ख पीछा करते चले आयेंगे.
बरगद ने समझाया-
नीम कभी झूठ नहीं बोलता बेटा.
जब हम सब तुम्हें यहां नहीं देख पायेंगे
हम सबके आंसू बारिशें बन जायेंगे.
बूढ़ा पीपल इस बात की तस्दीक करता है-
सयाना वह है
जो घर में रहकर गृहस्थी की बात करता है