व्याकुलता अब भी वैसी ही है ।
अन्तर बस इतना है—
- पहले वह होती थी रोज़-रोज़,
- तब हर अन्यायी को खोज-खोज
- लड़ने को मुट्ठी तन जाती थी ।
और आज—
- सुख-सुविधा की चिन्ता, कामकाज
- में फँसकर
- चार-छै महीनों में एक बार
- होती है ।
किन्तु आज भी है वह दुर्निवार ।
अब भी मेरी आत्मा वैसे ही रोती है ।