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शरदको फूलबारी / दुर्गालाल श्रेष्ठ

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फुलै न हो, फुल्नु थियो
फुल्यो हलक्क !
इन्द्रेणीझैं फूलबारी
खुल्यो झलक्क !

यो बारीको सासै आज
कस्तेा मगक्क !
ठाँटिएझैं यो मौसम
कस्तो गमक्क !

फूलमाथि पुतलीले
बसी थपक्क,
विना हलचलै हेर
चुस्यो सपक्क !

कत्ति राम्रो उत्सव यो
कस्तो रिवाज !
कत्ति मीठो गीत बज्यो
विना आवाज !