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एक दिन / मधुछन्दा चक्रवर्ती

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एक दिन
कैसे बीत जाता है?
ये अक्सर सोच में किसी के नहीं आता है
एक दिन जो यूँ ही बीत जाता है

सूर्योदय से दिन की शुरूआत
सूर्यास्त से दिन का अन्त
बस 'इतनी-सी बात' ही सबके सामने रह जाती है
पर ये एक दिन
कैसे बीत जाता है?
ये अक्सर सोच में किसी के नहीं आता है
एक दिन जो यू ही बीत जाता है

एक दिन कोई काम की तलाश में बीतता है
एक दिन भूख को मिटाने में बीतता है
एक दिन सवालों के जवाब ढूँढने में बीतता है
एक दिन उलझनों को सुलझाने में बीतता है

एक दिन सच को सामने लाने में बीतता है
एक दिन झूठ को खत्म करने में बीतता है

एक दिन बिखरे चीज़ों को समेटने में बीतता है
एक दिन कुछ चीज़ों को, खयालों को, सपनों को
सवारने में बीतता है
एक दिन
जो सपने को सच करने की कोशिश में बीतता है

एक दिन किसी को याद करने में बीतता है
एक दिन किसी के ख़यालों में बीतता है

एक दिन इसी तरह से बीतता है
हमारे सामने से,
पर अक्सर हमारे ही सोच में नहीं आता है
एक दिन जो हमारे सामने से बीतता है।