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हैफ़ / कुमार राहुल

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उम्र भर बैठे रहे दरीचे से लगकर
इंतजार के जितने इन्तेहाँ थे सब दिए...

हैफ़!
सद हैफ कि अब कहाँ
वो शब् वह सहर बाक़ी
गम-ए-दौरां, गम-ए-जानां
न कोई दहर बाक़ी...

सद हैफ कि अब कहाँ
वो रूहानियत वह शगफ़ देखूं
ख़ुद को देखूं अभी
या ज़माने की तरफ देखूं...

सद हैफ़ कि अब न वह
उक्दा न उलझन न इज़्तिराब जैसे
दिल की तसल्ली को पड़ते थे
यादों के कभी गिर्दाब जैसे...

सद हैफ कि सर्फ़ हो गए
थे जितने आंसू जितने मलाल
बे-निशां रह गयी-गयी राहें
बे-जुबां रह गए सारे ख़याल...

सद हैफ़ कि अब कहाँ वह
कॉल-ओ-करार की हिकायतें जानां
मुद्दतें गुज़री सुने हमको
उनके लफ़्ज़ों में शिकायतें जानां...

सद हैफ़ कि उनके आने की
खुश्बू न आहट न ख़बर कोई
दिल का धड़कना है मुअम्मा गो
मनाने से कब माने है मगर कोई...