Last modified on 15 मई 2020, at 19:24

सिलसिला / कुमार राहुल

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:24, 15 मई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार राहुल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कि जैसे उम्र एक वाकिया हो
और नींद कोई मुगालता

दर-ओ-दीवार में
उग आये हैं दरख्त कई

धुंध घेरे रहती है
शाम-ओ-शहर मेरे

किसी फरियादी की तरह
मिला हूँ ख़ुद से

सच है कि
अपनी ख्वाहिशों के बाहर
तो कोई भी नहीं

और मैं
इस्म-ओ-जिस्म के अलावा
हूँ भी तो क्या

उम्र एक सिलसिला है
कि जैसे ग़म तुम्हारा
ख़त्म हो कर भी नहीं होता ...