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अर्द्धसत्य / प्रकाश सायमी

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म कविता भएर
तिम्रो ओठमा आउन चाहन्थेँ
तिमीले मलाई
शब्द शब्दमा उनेर
कागजमा थुनिदियौ
म तिम्रो मनमा सजिन चाहन्थेँ
आत्म भएर
तर तिमीले
मलाई ढुङ्गा बनाएर
मन्दिरमा थन्काइदियौ