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कविता-4 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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मेरे प्‍यार की खुशबू वसंत के फूलों सी चारों ओर उठ रही है। यह पुरानी धुनों की याद दिला रही है अचानक मेरे ह्दय में ईच्‍छाओं की हरी पत्तियां उगने लगी हैं

मेरा प्‍यार पास नहीं है पर उसके स्‍पर्श मेरे केशों पर हैं और उसकी आवाज अप्रैल के सुहावने मैदानों से फुसफुसाती आ रही है। उसकी एकटक निगाह यहां के आसमानों से मुझे देख रही है पर उसकी आंखें कहां हैं उसके चुंबन हवाओं में हैं पर उसके होंठ कहां हैं ...

अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल