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राम / पंकज कुमार

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अहाँ मानि लेल!
की यएह थिक
जिनगीक सार्थकता?

बुझि पड़ैत अछि तेँ
बीहनि जकाँ उगिक'
अमरबेलक लत्ती जकाँ
पैघ होयबाक
सातत्य बनाओने छी

कहाँ जीबि रहलहुँ अछि
एकटा प्राणपूर्ण जीवन
सामान्य गतिसँ
बाम-हीन करैत एखनहुँ
अहाँक अकुलायब अछि
एहि बातक गवाह
तेँ बत्तीस गोट दाँत रहितहु
जन्मा लेने छी
दाड़िम जकाँ पेटमे दाँत

हँ छलहुँ
आठ बरखक उमेरमे अहाँ
समुद्र जकाँ गम्भीर, निश्छल आ प्रशांत
छल सुरूज जकाँ प्रतिभा,
प्रखरता आ तेजस्विता
आत्मबल आ कला-कौशल देखि
केओ कहि सकैत छल
अहाँ छी एकटा
विपुल संभावना बला मनुख
तेँ भरि गामक लोककेँ
कहैत छलथि अहाँक माय
हमर बेटा अछि एन-मेन राम जकाँ

बिसारि देलहुँ
आत्मामे थापल सद्ज्ञानकेँ
हेरा गेल बाटहिमे
सहानुभूति आ सह-अस्तित्वक भाव
जाहिसँ सगर संसारमे
स्थापित भ' सकैत छल मानवता
निःस्वार्थ आ निःस्पृहक जगह पर
आबि गेलैक स्वार्थपूर्ण संचय

तँ अहाँ
कोना उतरब पार
एहि जीवन संग्राममे
किएक
अहाँक शक्ति भ' गेल क्षीण
तेँ अहाँक मनोदशा अछि अथबल
कोनो तलाओ वा झीलक पानि जकाँ

प्रमाणित करय पड़त अहाँकेँ
पराक्रम आ पौरुषक उत्कृष्टताकेँ

बनाक' राखय पड़त
अक्षुण्ण प्रवाह
कोनो नदी जकाँ
क्षुद्र लिप्साक त्याग क'
करय पड़त प्रगति स्वप्नकेँ साकार

तखन
अहाँ बनि जायब "राम"
किएक
ताधरि फूजि गेल रहत
मर्यादा आ आत्मसंतोषक
सभटा फाटक।