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पिता / संगीता कुजारा टाक

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बरसों हो गए
/ कोशिश जारी है /
उसकी तरह बनने की
उसकी तरह सोचने की
परिवार के लिए, उसीकी तरह कमाऊ और रक्षक बनने की
अपनी बात रखने की
जिंदगी के दर्द को
इसके संघर्ष को
जीतने की
फिर भी उसकी तरह होना नहीं आया / आज तक
कि, पिता बकोशिश बना नहीं जाता
पिता उमगता है आदमी में