शंख और अज़ान की आवाज़ पर
जागने वाला शहर
करवट बदल कर सो गया है
एक बार फिर
भारत के मानचित्र पर
किसी और देश का इतिहास रचने के आरोप में
सज़ा काटते निरीह और मासूम लोग
कहीं फँस गए हैं
पाखंड और परामर्श के
अनंत चक्रव्यूह में
पाप और पश्चाताप के
इस महाकुंभ में
विचरण और विस्मरण के बीच
भय और विस्मय के भंवर में
उलझ कर कहीं रह गई है मानवता
और हम !
कविता लिख रहे हैं
सिर्फ़ कविता।